
जहां याद न आये तेरी वो तन्हाई किस काम की
बिगड़े रिश्ते न बने वो खुदाई किस काम की
बेशक अपनी मंजिल तक जाना है हमें
लेकिन जहां से अपने न दिखें
वो ऊंचाई किस काम की

दिल सोचता है कि कोई तो आए और
चुपके से आकर चौका कर दूर कर दे
इस अकेलेपन को
फिर दिल करता है कुछ वक्त अकेले बिताने का
क्योंकि इंसान जब भी अकेला होता है
वह खुद के साथ होता है

जिसके नसीब मे हों ज़माने की ठोकरें
उस बदनसीब से
ना सहारों की बात कर

वो तेरे खत तेरी तस्वीर
और सूखे फूल
उदास करती हैं मुझ को
निशानियाँ तेरी

मिजाज को बस तल्खियाँ ही रास आईं
हम ने कई बार मुस्कुरा कर देख लिया

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हैं मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं
हम अभी तक हैं गिरफ्तार-ए-मोहब्बत यारों
ठोकरें खा के सुना था कि संभल जाते हैं

खुदा को इस कदर हमारी खुदासा कर गए
हमारे हाथों में उनका हाथ था
हमारे हां में उनकी हा थी
मगर खुद कैसे ना कर गए

काश वो समझते इस दिल की तड़प को
तो हमें यूँ रुसवा न किया जाता
यह बेरुखी भी उनकी मंज़ूर थी हमें
बस एक बार हमें समझ तो लिया होता

दिल मे आरजू के दिए जलते रहेगे
आँखों से मोती निकलते रहेगे
तुम शमा बन कर दिल में रौशनी करो
हम मोम की तरह पिघलते रहेंगे

चेहरे पर हँसी छा जाती है
आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो
अपने आप पर ग़ुरूर आ जाता है

इस मोहब्बत की किताब के
बस दो ही सबक याद हुए
कुछ तुम जैसे आबाद हुए और
कुछ हम जैसे बरबाद हुए

जो कोई सोच भी न सके वो बात है हम
जो ढल के नई सुबह लाये वो रात है हम
अक्सर लोग रिश्ते बनाकर छोड़ दिया करते है
जो जिंदगी भर साथ निभाए वो साथ है हम

हमे फिर सुहाना नज़ारा मिला है
क्योंकि जिंदगी में साथ तुम्हारा मिला है
अब जिंदगी में कोई ख्वाइश नही रही
क्योंकि हमे अब तुम्हारी बाहों का सहारा मिला है

हमारी आँखों में तुम हो दिल में तुम्हारी तस्वीर है
तुम्हारे लिए हमारा दिल तो क्या
जान भी हाजिर है

जख़्म इतना गहरा हैं इज़हार क्या करें
हम ख़ुद निशां बन गये ओरो का क्या करें
मर गए हम मगर खुली रही आँखे हमरी
क्योंकि हमारी आँखों को उनका इंतेज़ार हैं

सोचा था तड़पायेंगे हम उन्हें
किसी और का नाम लेके जलायेगें उन्हें
फिर सोचा मैंने, उन्हें तड़पाके दर्द मुझको ही होगा
तो फिर भला किस तरह सताए हम उन्हें

दिन हुआ है तो रात भी होगी
मत हो उदास उससे कभी बात भी होगी
वो प्यार है ही इतना प्यारा
ज़िंदगी रही तो मुलाकात भी होगी

वो बिछड़ के हमसे ये दूरियां कर गई
न जाने क्यों ये मोहब्बत अधूरी कर गई
अब हमे तन्हाइयां चुभती है तो क्या हुआ
कम से कम उसकी सारी तमन्नाएं तो पूरी हो गई

गजल के रूप में ढल जाऊ
काश मै भी कभी
उदास लम्हों में शायद तुम मुझे
गुनगुनाया करो

होले होले कोई याद आया करता है
कोई मेरी हर साँसों को महकाया करता है
उस अजनबी का हर पल शुक्रिया अदा करते हैं
जो इस नाचीज़ को मोहब्बत सिखाया करता है
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